शेखावटी राज्य के संस्थापक महाराव शेखाजी का आज ५८७ वां प्रकाशोत्सव है ।
शेखावटी राज्य के संस्थापक महाराव शेखाजी का आज ५८७ वां प्रकाशोत्सव है ।
विजय दशमी वि सं १४९० समय शाम २०:१५ बजे ,तदानुसार २१ सितम्बर १४३४ ई रविवार , राजपूत इतिहास का अतिविशिष्ट दिन था । उस दिन पिता बरवाडाधिपति मोकलजी व माता अलखाजी निरबाण की कोंख से सूर्यवंश के वीर शिरोमणी , नरपुंगव महाराव शेखाजी का कच्छवाहा कुल की २४६ वीं पीढ़ी में नानाश्री लूणकरणजी के घर,गढ़ त्योंदा में जन्म हुआ था
उस दिन शाम १९: ३० बजे तक शरदरात्रीय दुर्गा नवमी तिथि थी ।
गढ़ त्योंदा , खेतडी - दिल्ली मार्ग पर ; खेतडी से लगभग १८ कि मी , मार्ग से २.५ कि मी उत्तर दिशा में अरावली श्रेणी के महामल पर्वत के उत्तरपूर्वी उपत्यका के ढलान पर सिथत है । ।
लूणकरणजी निरबाण दूरदर्शी , बुद्धीजीवी ,कुशल प्रशासक थे । राजनैतिक परिस्थितियों , तत्कालीन षड्यंत्रों के कारण , राजकुमार शेषा ( उच्चारण -शेखा ) का जीवन विकट समस्याओं से भराहुआ था ।
उनके प्रारम्भिक बचपन के लगभग १२ वर्ष , नानाजी लूणकरणजी के सानिध्य में ही बीता ।
उनकी शिक्षादीक्षा , युद्धविद्या , व्यूह रचनाओं का प्रशिक्षण वहीं हुआ । वि सं १५०२ में वे अमरसर की गद्दी पर बैठे ।
मात्र १६ वर्ष की उम्र में उन्होंने विजय अभियान शुरू किया और वि अक्षय तृतिया सं १५४५ ; मृत्यु पर्यन्त ३९ वर्ष तक युद्धरत रहे ।
उन्होंने युद्ध के मैदान में ही कनिष्ठ राजकुमार रायमलजी को अपना खांडा भेंट कर , बहुत बडे राज्य की बाग़डोर सौंपी । अपने जीवनकाल में ही उन्होंने पुत्रों स्वावलम्बन प्रदान करके हुए " शेखावत संघ" की स्थापना की ।
आज इस द्विगुणात्मक पावन पर्व पर मैं परमपूज्य महाराव शेखाजी को सादर प्रणाम अर्ज़ करता हूँ । सभी मित्रों को विजयदशमी की मंगलकामनाएँ पेश करता हूँ ।
विजय दशमी वि सं १४९० समय शाम २०:१५ बजे ,तदानुसार २१ सितम्बर १४३४ ई रविवार , राजपूत इतिहास का अतिविशिष्ट दिन था । उस दिन पिता बरवाडाधिपति मोकलजी व माता अलखाजी निरबाण की कोंख से सूर्यवंश के वीर शिरोमणी , नरपुंगव महाराव शेखाजी का कच्छवाहा कुल की २४६ वीं पीढ़ी में नानाश्री लूणकरणजी के घर,गढ़ त्योंदा में जन्म हुआ था
उस दिन शाम १९: ३० बजे तक शरदरात्रीय दुर्गा नवमी तिथि थी ।
गढ़ त्योंदा , खेतडी - दिल्ली मार्ग पर ; खेतडी से लगभग १८ कि मी , मार्ग से २.५ कि मी उत्तर दिशा में अरावली श्रेणी के महामल पर्वत के उत्तरपूर्वी उपत्यका के ढलान पर सिथत है । ।
लूणकरणजी निरबाण दूरदर्शी , बुद्धीजीवी ,कुशल प्रशासक थे । राजनैतिक परिस्थितियों , तत्कालीन षड्यंत्रों के कारण , राजकुमार शेषा ( उच्चारण -शेखा ) का जीवन विकट समस्याओं से भराहुआ था ।
उनके प्रारम्भिक बचपन के लगभग १२ वर्ष , नानाजी लूणकरणजी के सानिध्य में ही बीता ।
उनकी शिक्षादीक्षा , युद्धविद्या , व्यूह रचनाओं का प्रशिक्षण वहीं हुआ । वि सं १५०२ में वे अमरसर की गद्दी पर बैठे ।
मात्र १६ वर्ष की उम्र में उन्होंने विजय अभियान शुरू किया और वि अक्षय तृतिया सं १५४५ ; मृत्यु पर्यन्त ३९ वर्ष तक युद्धरत रहे ।
उन्होंने युद्ध के मैदान में ही कनिष्ठ राजकुमार रायमलजी को अपना खांडा भेंट कर , बहुत बडे राज्य की बाग़डोर सौंपी । अपने जीवनकाल में ही उन्होंने पुत्रों स्वावलम्बन प्रदान करके हुए " शेखावत संघ" की स्थापना की ।
आज इस द्विगुणात्मक पावन पर्व पर मैं परमपूज्य महाराव शेखाजी को सादर प्रणाम अर्ज़ करता हूँ । सभी मित्रों को विजयदशमी की मंगलकामनाएँ पेश करता हूँ ।
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