राजा मानसिंह सनातन धर्म रक्षक🚩|| राजपूत इतिहास||क्षत्रिय||
इस सनातन भूमि पर जब दानवीरो की चर्चा होती है तो आज तक तीन ही महान दानवीरों का नाम आता है और तीनो ही क्षत्रिय थे, इस विषय पर यह दोहा प्रचलित है-
बलि बोई कीरत लता कर्ण करे द्वपान।
सिची मान महिप ने जद देखी कुमलान।।
अर्थात :-
राजा बलि ने दान की बेलडी बोई और कर्ण ने उस बेलडी के दो पान (पत्ते) लगाए यानी दान की परम्परा को आगे बढाया। ओर जब बेलडी मुरझाने लगी तो राजा मान सिह आमेर ने उसको सींचा ।
यानी दान की महिमा कम होने लगी तो, उसको वापिस प्रारम्भ किया।
राजपूताना के आमेर इतिहास प्रसिद्ध राजा मानसिंह सनातन धर्म के अनन्य उपासक थे. वे सनातन धर्म के सभी देवी और देवताओं के भक्त थे व स्वधर्म में प्रचलित सभी सम्प्रदायों का समान रूप से आदर करते थे। वे हमेशा एक आम राजपूत की तरह अपने कुलदेवी, कुलदेवता व इष्ट के उपासक रहे।
अपनी दीर्घकालीन वंश परम्परा के अनुरूप राजा मानसिंह ने सभी सम्प्रदायों के संतों का आदर किया। यद्धपि राजा मानसिंह सनातन धर्म के दृढ अनुयायी रहे फिर भी वे धर्मान्धता और अन्धविश्वास से मुक्त धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत थे। जिसकी पुष्टि रोहतास किले में एक पत्थर पर उनके द्वारा उत्कीर्ण करवाई एक कुरान की आयात से होती है, जिसमें कहा गया है कि-
“धर्म का कोई दबाव नहीं होता, सच्चा रास्ता झूठे रास्ते से अलग होता है।”
राजा मानसिंह के काल में अकबर ने धर्म क्षेत्र में नया प्रयोग किया और अपना “दीने इलाही” धर्म विकसित किया।
राजा मानसिंह अकबर के सर्वाधिक नजदीकी व्यक्ति थे, फिर भी अकबर की लाख कोशिशों के बाद भी वे अपने स्वधर्म से एक इंच भी दूर हटने को तैयार नहीं हुये।
अकबर के दरबारी इतिहासकार बदायुनी का कथन है कि-
“एक बार 1587 में जब राजा मानसिंह बिहार, हाजीपुर और पटना का कार्यभार संभालने के लिए जाने की तैयारी कर रहे थे तब बादशाह ने उसे खानखाना के साथ एक मित्रता का प्याला दिया और दीने इलाही का विषय सामने रखा। यह मानसिंह की परीक्षा लेने के लिए किया गया।
कुंवर ने बिना किसी बनावट के कहा -
' अगर सेवा का मतलब अपना जीवन बलिदान करने की कामना से है तो क्षत्रिय होने के नाते अपने प्राण हथेली पर लिए घूमता हूं, इससे अधिक क्या प्रमाण चाहिए। अगर फिर भी इसका दूसरा अर्थ है और यह धर्म से सम्बन्धित है तो मां भवानी ने पहले ही मेरे सीने पर हिंदुत्व की छाप लगा रखी है अतः मैं निश्चित रूप से हिंदू हूं और आजीवन रहूंगा ।"
यह राजा मान ही थे जिन्होंने हिन्दुओं पर न तो जाजिया कर लगने दिया और ना ही मंदिरों में पूजा अर्चना में बाधा आने दी|
बलि बोई कीरत लता कर्ण करे द्वपान।
सिची मान महिप ने जद देखी कुमलान।।
अर्थात :-
राजा बलि ने दान की बेलडी बोई और कर्ण ने उस बेलडी के दो पान (पत्ते) लगाए यानी दान की परम्परा को आगे बढाया। ओर जब बेलडी मुरझाने लगी तो राजा मान सिह आमेर ने उसको सींचा ।
यानी दान की महिमा कम होने लगी तो, उसको वापिस प्रारम्भ किया।
राजपूताना के आमेर इतिहास प्रसिद्ध राजा मानसिंह सनातन धर्म के अनन्य उपासक थे. वे सनातन धर्म के सभी देवी और देवताओं के भक्त थे व स्वधर्म में प्रचलित सभी सम्प्रदायों का समान रूप से आदर करते थे। वे हमेशा एक आम राजपूत की तरह अपने कुलदेवी, कुलदेवता व इष्ट के उपासक रहे।
अपनी दीर्घकालीन वंश परम्परा के अनुरूप राजा मानसिंह ने सभी सम्प्रदायों के संतों का आदर किया। यद्धपि राजा मानसिंह सनातन धर्म के दृढ अनुयायी रहे फिर भी वे धर्मान्धता और अन्धविश्वास से मुक्त धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत थे। जिसकी पुष्टि रोहतास किले में एक पत्थर पर उनके द्वारा उत्कीर्ण करवाई एक कुरान की आयात से होती है, जिसमें कहा गया है कि-
“धर्म का कोई दबाव नहीं होता, सच्चा रास्ता झूठे रास्ते से अलग होता है।”
राजा मानसिंह के काल में अकबर ने धर्म क्षेत्र में नया प्रयोग किया और अपना “दीने इलाही” धर्म विकसित किया।
राजा मानसिंह अकबर के सर्वाधिक नजदीकी व्यक्ति थे, फिर भी अकबर की लाख कोशिशों के बाद भी वे अपने स्वधर्म से एक इंच भी दूर हटने को तैयार नहीं हुये।
अकबर के दरबारी इतिहासकार बदायुनी का कथन है कि-
“एक बार 1587 में जब राजा मानसिंह बिहार, हाजीपुर और पटना का कार्यभार संभालने के लिए जाने की तैयारी कर रहे थे तब बादशाह ने उसे खानखाना के साथ एक मित्रता का प्याला दिया और दीने इलाही का विषय सामने रखा। यह मानसिंह की परीक्षा लेने के लिए किया गया।
कुंवर ने बिना किसी बनावट के कहा -
' अगर सेवा का मतलब अपना जीवन बलिदान करने की कामना से है तो क्षत्रिय होने के नाते अपने प्राण हथेली पर लिए घूमता हूं, इससे अधिक क्या प्रमाण चाहिए। अगर फिर भी इसका दूसरा अर्थ है और यह धर्म से सम्बन्धित है तो मां भवानी ने पहले ही मेरे सीने पर हिंदुत्व की छाप लगा रखी है अतः मैं निश्चित रूप से हिंदू हूं और आजीवन रहूंगा ।"
यह राजा मान ही थे जिन्होंने हिन्दुओं पर न तो जाजिया कर लगने दिया और ना ही मंदिरों में पूजा अर्चना में बाधा आने दी|
धन्यवाद🇮🇳
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