वीर योद्धा अमर सिंह जी राठौड़||राजपूत योद्धा||राजपूत इतिहास
।। अमरसिंह राठौड़ एवं बल्लू चांपावत इतिहास के वह अमर राजपूत योद्धा जिन्होंने आगरा में मचा दिया था घमासान युद्ध ।।
जोधपुर: भारत की भूमि पर अनेक योद्धाओं और महायोद्धाओं ने जन्म लिया है। अपने दुश्मन को धूल चटाकर विजयश्री हासिल करने वाले इन योद्धाओं ने कभी अपने प्राणों की परवाह नहीं की। हमारे इतिहास ने इन योद्धाओं को वीरगति से नवाजा, सदियां बीतने के बाद आज भी इन्हें शूरवीर ही माना जाता है.पृथ्वीराज चौहान, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौड़, जयमल मेडतिया,कल्ला जी राठौड़,गौरा-बादल आदि पर अमर सिंह राठौड़ की वीरता एक विशिष्ट थी,जी हाँ आज हम आपको वीर योद्धा अमरसिंह राठौड़ के विषय में जानकारी प्रदान कर रहे हे आशा हे!आपको पसंद आएगी . अमर सिंह राठौड़ भारतीय इतिहास मे एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है.उनमें शौर्य, पराक्रम की पराकाष्ठा के साथ रोमांच के तत्व विधमान थे उन्होंने अपनी आन-बान के लिए 31 वर्ष की आयु में ही अपनी इहलीला समाप्त कर ली
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वीर योद्धा अमर सिंह जी राठौड़ जीवन परिचय : अमर सिंह राठौड़ की वीरता सर्वविदित है ये जोधपुर के महाराजा गज सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे जिनका जन्म रानी मनसुख दे की कोख से वि.स.1670 , 12 दिसम्बर 1626 को हुआ था अमर सिंह बचपन से ही बड़े उद्दंड,चंचल प्रवृत्ति वाला था। पर उसकी उच्छ्रंखलताओं में असाधारण साहस और स्वतंत्र प्रकृति का भाव छुपा हुआ होता था। उसके उपरांत भी राव अमरसिंह राठौड़ के पिता गजसिंह को यह सब अच्छा नही लगता था। अमरसिंह राठौड़ को अपने कार्यों और निर्णयों में किसी का हस्तक्षेप स्वीकार्य नही था।इसलिए पिता पुत्र में दूरियां बनती चली गयीं। अमरसिंह राठौड़ में एक वीर के सारे गुण विद्यमान थे, एक देशभक्त की सारी देशभक्ति विद्यमान थी और एक कुलीन की सारी कुलीनता विद्यमान थी। परंतु पिता ने अपने पुत्र के भीतर इन सब गुणों के रहते हुए भी अपने कनिष्ठ पुत्र कुंवर जसवंतसिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। अमरसिंह ने पिता के आदेश को मौन रहकर यथावत स्वीकार कर लिया। गजसिंह उस समय लाहौर में थे। इसलिए अमरसिंह राठौड़ वहीं चला गया। पिता ने अपने पुत्र का परिचय बादशाह शाहजहां से कराया। शाहजहां ने अमरसिंह राठौड़ की वीरता के किस्से सुन रखे थे इसलिए शाहजहां ने अपने हित स्वरुप अमरसिंह जी को डेढ़ हजार सवार का मनसब व जागीर में पांच परगने दे दिये।
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